हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को जन्मतिथि प्रमाण के रूप में मानने से इनकार किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की उम्र प्रमाणित करने के लिए आधार कार्ड का उपयोग नहीं किया जा सकता।
इसके बजाय, स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेजों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस फैसले ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज किया, जिसमें सड़क दुर्घटना पीड़ित की उम्र आधार कार्ड के आधार पर तय की गई थी।
हाईकोर्ट और Supreme Court के फैसलों में अंतर
मामला तब शुरू हुआ जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के फैसले को पलट दिया। एमएसीटी ने दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की उम्र का निर्धारण स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र के आधार पर किया था और मुआवजे की गणना उसी आधार पर की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने आधार कार्ड में दी गई उम्र के आधार पर मुआवजा राशि को कम कर दिया।
हाईकोर्ट ने मृतक की उम्र 47 वर्ष मानते हुए मुआवजा घटाकर 9.22 लाख कर दिया। इस फैसले के खिलाफ मृतक के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द कर एमएसीटी के फैसले को पुनः बहाल किया।
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UIDAI के दिशा-निर्देश: आधार कार्ड का सीमित उपयोग
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया। UIDAI के 8/2023 परिपत्र में बताया गया कि आधार कार्ड पहचान प्रमाण के रूप में मान्य है, लेकिन इसे जन्म तिथि प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। UIDAI ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि को कानूनी तौर पर प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसमें बदलाव की सीमित अनुमति होती है, जो इसे विश्वसनीय नहीं बनाती।
इन दिशा-निर्देशों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को केवल पहचान प्रमाण के रूप में मान्यता दी और जन्म तिथि प्रमाण के रूप में अस्वीकार कर दिया। यह निर्णय आधार के उद्देश्य को स्पष्ट करता है, जो केवल पहचान स्थापित करना है, और इसके अन्य उपयोग पर सीमाएं लगाता है।
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 का भी उल्लेख किया। इस अधिनियम के तहत, यदि किसी व्यक्ति की उम्र निर्धारित करनी हो, तो प्राथमिकता के आधार पर स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र लिया जाना चाहिए।
अधिनियम के अनुसार, जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल प्रमाणपत्र जैसे प्रामाणिक दस्तावेज़ को प्राथमिक माना जाता है। अदालत ने इस आधार पर कहा कि आधार कार्ड को जन्म तिथि प्रमाण के रूप में मानने का कोई कानूनी आधार नहीं है, और स्कूल प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ अधिक विश्वसनीय होते हैं।
फैसले का व्यापक प्रभाव: कानूनी स्पष्टता और मुआवजा मामलों में उपयोग
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कई कारणों से महत्वपूर्ण है और भविष्य में विभिन्न कानूनी मामलों पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को जन्म तिथि प्रमाण के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। इससे मुआवजा मामलों, खासकर सड़क दुर्घटनाओं जैसे मामलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ेगी।
UIDAI के दिशा-निर्देशों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय अहम है। इसके तहत, आधार कार्ड का उपयोग केवल पहचान प्रमाण के रूप में किया जाएगा, जबकि जन्म तिथि जैसे संवेदनशील विवरण के लिए अधिक विश्वसनीय दस्तावेज़ों का प्रयोग किया जाएगा।
यह निर्णय किशोर न्याय अधिनियम के नियमों को सुदृढ़ करता है, जिसमें बच्चों की उम्र के निर्धारण में स्कूल प्रमाणपत्र को प्राथमिकता देना अनिवार्य बनाता है, और आधार कार्ड का प्रयोग इस संदर्भ में नहीं किया जा सकता।
इस फैसले से यह स्थापित हुआ कि स्कूल प्रमाणपत्र और जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ उम्र प्रमाणित करने के लिए अधिक विश्वसनीय हैं।
निष्कर्ष: आधार कार्ड का सीमित उपयोग और कानूनी दिशा-निर्देशों की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि आधार कार्ड को केवल पहचान प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इसे जन्म तिथि प्रमाण के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। यह निर्णय UIDAI के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करता है और कानूनी मामलों में आधार कार्ड के सीमित उपयोग पर जोर देता है। यह निर्णय भविष्य में मुआवजा निर्धारण और अन्य कानूनी विवादों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, और अन्य दस्तावेज़ों की विश्वसनीयता पर बल देगा।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि आधार कार्ड की भूमिका केवल पहचान स्थापित करने तक सीमित है, जबकि जन्म तिथि के प्रमाण के लिए अन्य अधिक विश्वसनीय दस्तावेज़ों का उपयोग किया जाना चाहिए।
Frequently Asked Questions
Can Aadhaar be used as proof of date of birth?
No, the Supreme Court has ruled that Aadhaar cannot be used as proof of date of birth. It can only be used as an identity proof.
What documents should be used for age verification?
The Court emphasized that documents like a school leaving certificate or a birth certificate should be prioritized for age verification.
Why was the use of Aadhaar for age verification rejected?
Aadhaar contains limited scope for modifications to personal details like date of birth, making it unreliable as a legal proof for age verification. The UIDAI guidelines clarify that Aadhaar is only valid as identity proof.
What impact does this ruling have on legal matters like compensation?
This ruling is significant for cases like accident claims where age verification is crucial. It ensures that more reliable documents, such as school certificates, are used, leading to greater transparency in compensation determination.
What is the role of UIDAI in this ruling?
UIDAI’s guidelines, which state that Aadhaar cannot be used for age verification, are reinforced by the Supreme Court’s decision. The ruling supports the limited use of Aadhaar and upholds the credibility of other official documents.
How does this ruling affect children’s age determination?
Under the Juvenile Justice Act, the Court reinforced that a school certificate should be given priority in determining the age of children, and Aadhaar cannot be used for this purpose.
Can the ruling affect future legal cases?
Yes, the ruling sets a precedent for future legal cases involving age verification, particularly in compensation and juvenile justice cases, and emphasizes the need for more reliable documents for age proof.
Conclusion
The Supreme Court’s ruling clarifies the limited role of Aadhaar as an identity proof and its inapplicability for age verification. This decision upholds the guidelines issued by UIDAI and reinforces the importance of using more reliable documents, such as school leaving certificates or birth certificates, for determining a person’s age.
The ruling has significant implications for legal matters, particularly in compensation claims and juvenile justice cases, ensuring greater transparency and fairness. Moving forward, this decision will likely guide the use of Aadhaar and other official documents in legal contexts, emphasizing the need for more trustworthy sources for age verification.